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Happy Raksha Bandhan

raksha bandhan ka mahatva श्रावण शुक्ल पूर्णिमा

Happy Raksha Bandhan – श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इसमें पराह्ण्व्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि वह दो दिन हो या दोनों ही दिन न हो तो पूर्वा लेनी चाहिये। यदि उस दिन भद्रा हो तो उसका त्याग कर देना चाहिये। भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी दोनों वर्जत हैं। क्योंकि श्रावणी से राजा का और फाल्गुनी से प्रजा का अनिष्ट होता है।

भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा ।

श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी ॥

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इस व्रत का विधान इस प्रकार है – (Happy Raksha Bandhan)

व्रती को चाहिये कि इस दिन प्रातः सविधि स्नान करके देवता, पितर और ऋषियों का तर्पण करे। दोपहर के बाद ऊनी, सूती या रेशमी पीतवस्त्र लेकर उसमें सरसों, स्वर्ण, केसर, चंदन, अक्षत और दूर्वा रखकर बांध लें। फिर गोबर से लिपे स्थान पर कलश स्थापन कर उसपर रक्षासूत रखकर उसका यथाविधि पूजन करें। उसके बाद विद्वान ब्राह्मण से रक्षासूत को दाहिने हाँथ में बंधवाना चाहिये। रक्षासूत बाँधते समय ब्राह्मण को निम्नलिखित मंत्र पढना चाहिये –

येन बद्धो बली राजा दानवेंद्रो महाबलः।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस व्रत के संदर्भ में यह कथा प्रचिलित है – (Happy Raksha Bandhan)

प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं का पराभव हुआ और असुतों ने स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया। दुःखी पराजित और चिंतित इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास गये और कहने लगे कि इस समय न तो मैं यहाँ ही सुरक्षित हूँ और न ही यहाँ से कहीं निकल ही सकता हूँ। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना ही अनिवार्य है, जबकि अब तक के युद्ध में हमारा पराभव ही हुआ है। इस वार्तालाप को इंद्राणी भी सुन रहीं थीं। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है मैं विधान पूर्वक रक्षासूत तैयार करूँगी, उसे आप स्वस्ति वाचन पूर्वक ब्राम्हणों से बंधवा लीजियेगा। इससे आप अवश्य विजयी होंगें।

दूसरे दिन इंद्र ने रक्षाविधान और स्वस्ति वाचन पूर्वक रक्षाबंधन कराया । जिसके प्रभाव से उनकी विजय हुई। तबसे यह पर्व मनायाजाने लगा। इस दिन बहिनें भाइयों को कलाई में रक्षासूत ( राखी ) बाँधतीं हैं।

राजा बलि और माँ लक्ष्मी की कथा

श्रीमदभागवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया | भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गये | हालाँकि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, अतः उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया |

इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया | इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा | इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे | बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकार कर लिया |

संतोषी माँ से सम्बंधित कथा – (Happy Raksha Bandhan)

भगवान गणेशजी के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ | इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्योंकि बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे | इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की | कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा | इस पर भगवान गणेश राज़ी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की | भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, इनकी दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ | इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मना सके |

कृष्ण और द्रौपदी से सम्बंधित कथा – (Happy Raksha Bandhan)

महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी ने कृष्ण की रक्षा के लिए उनके हाथ मे राखी बाँधी थी | इसी युद्ध के समय कुंती ने भी अपने पौत्र अभिमन्यु की कलाई पर सुरक्षा के लिए राखी बाँधी | एसा भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कलाई पर बांधे हुए एक सूत के बदले स्वम् साडी बनकर द्रोपदी की रक्षा की थी |

यम और यमुना से सम्बंधित कथा –  

एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की | गंगा ने यह सूचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं | इस पर यम युमना से मिलने आये | यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी तैयार किये | यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं |

इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास मिलने आयें | यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया | भाई बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है |

रक्षाबंधन कैसे मनाये – (Happy Raksha Bandhan)

अगर असल मायने में इसे मनाना हैं तो इसमें से सबसे पहले लेन देन का व्यवहार खत्म करना चाहिये | साथ ही बहनों को अपने भाई को हर एक नारी की इज्जत करे, यह सीख देनी चाहिये और उपहार स्वरूप यह वचन लेना चाहिए | जरुरी हैं कि व्यवहारिक ज्ञान एवम परम्परा बढे तब ही समाज ऐसे गंदे अपराधो से दूर हो सकेगा |

रक्षाबंधन का यह त्यौहार मनाना हम सभी के हाथ में हैं और आज के युवावर्ग को इस दिशा में पहला कदम रखने की जरुरत है | इसे एक व्यापार ना बनाकर एक त्यौहार ही रहने दे | जरूरत के मुताबिक अपनी बहन की मदद करना सही हैं लेकिन बहन को भी सोचने की जरुरत हैं कि गिफ्ट या पैसे पर ही प्यार नहीं टिका हैं | जब यह त्यौहार इन सबके उपर आयेगा तो इसकी सुन्दरता और भी अधिक निखर जायेगी |

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Pandit Rajkumar Dubey

Pandit Rajkumar Dubey

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