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Vijaya Ekadashi Vrat Katha

Vijaya Ekadashi Vrat Katha

विजया एकादशी व्रत कथा की महिमा:

Vijaya Ekadashi Vrat Katha – विजया एकादशी व्रत कथा, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत की कथा में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा का वर्णन है।

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युधिष्ठिर ने पूछा – वासुदेव ! फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है | कृपा करके बताइए |

भगवान श्रीकृष्ण वोले – युधिष्ठिर एक बार नारद जी ने कमल के आसन पर विराजमान होने वाले ब्रह्मा जी से प्रश्न किया – सुरश्रेष्ठ ! फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में जो विजया नाम की एकादशी होती है कृपया उसके पुण्य का वर्णन कीजिए |

ब्रह्मा जी ने कहा – नारद ! सुनो – में तुम्हें एक उत्तम कथा सुनाता हूं, जो पापों का अपहरण करने वाली है | यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है | यह विजय नाम की एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है | इसमें तनिक भी संदेह नहीं है | पूर्व काल की बात है, भगवान श्री रामचंद्र जी 14 वर्षों के लिए वन में गए | और वहां पंचवटी में सीता तथा लक्ष्मण के साथ रहने लगे |

वहां रहते समय रावण ने चपलतावस् विजयात्मा श्री राम की तपस्विनी पत्नी सीता को हर लिया | उस दुख से श्री राम व्याकुल हो उठे | उस समय सीता की खोज करते हुए वन में घूमने लगे | कुछ दूर पर जाने पर उन्हें जटायु मिले जिन की आयु समाप्त हो चुकी थी | इसके बाद उन्होंने वन के भीतर कबंध नामक राक्षस का वध किया | फिर सुग्रीव के साथ उनकी मित्रता हुई, तत्पश्चात श्री राम के लिए बंदरों की सेना एकत्रित हुई |

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हनुमान जी ने लंका के उद्यान में जाकर सीता जी का दर्शन किया, और उन्हें श्री रामकी चिन्ह स्वरूप मुद्रिका प्रदान की | उन्होंने महान पुरुषार्थ का काम किया था | वहां से लौट कर वे श्री रामचंद्र जी से मिले, और लंका का सारा समाचार उनसे निवेदन किया | हनुमान जी की बात सुनकर श्रीराम ने सुग्रीव की अनुमतिले लंका को प्रस्थान करने का विचार किया | और समुद्र के किनारे पहुंचकर उन्होंने लक्ष्मण से कहा – सुमित्रानंदन किस पुण्य से इस समुद्र को पार किया जा सकता है | यह अत्यंत अज्ञात और भयंकर जल जंतुओं से भरा हुआ है | मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखाई देता जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके |

लक्ष्मण बोले – महाराज ! आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष पुरुषोत्तम हैं | आपसे क्या छिपा है ? यहां द्वीप के भीतर बकादालभ्य नामक मुनि रहते हैं | यहां से आधे योजन की दूरी पर उनका आश्रम है | रघुनंदन उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हीं से इसका उपाय पूछिये |

लक्ष्मण जी की यह अत्यंत सुंदर बात सुनकर श्री रामचंद्र जी महा मुनि बकदालब्ध से मिलने के लिए गए | वहां पहुंचकर उन्होंने मस्तक झुकाकर मुनि को प्रणाम किया | मुनि उनको देखते ही पहचान गए कि यह पुराण पुरुषोत्तम श्री राम है | जो किसी कारण बस मानव शरीर में अवतीर्ण हुए हैं | उनके आने से महर्षि को बड़ी प्रसन्नता हुई, उन्होंने पूछा – श्री राम आपका कैसे यहां आगमन हुआ है ?

श्री राम बोले – ब्रह्मण आपकी कृपा से राक्षसों सहित लंका को जीतने के लिए सेना के साथ समुद्र के किनारे आया हूं | हे मुने अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके वह उपाय बताइए, मुझ पर कृपा कीजिए |

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बकादालभ्य ने कहा – श्रीराम ! फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में जो विजया नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी | निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे | राजन अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिए |

पूजन विधि

दशमी का दिन आने पर एक कलश स्थापित करें, वह सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का भी हो सकता है | उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डालकर उसके ऊपर भगवान नारायण के विग्रह की स्थापना करें | फिर एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करें | कलश को पुनः स्थिरतापूर्वक स्थापित करें | नारियल आदि के द्वारा विशेष रूप से उसका पूजन करें | कलश के सामने बैठकर सारा दिन उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा व्यतीत करें, तथा रात में भी वहां जागरण करें |  अखंड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलाएं |

फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप नदी झरने या पोखर के तट पर ले जाकर स्थापित करें | और उसकी विधिवत्त पूजा करके देव प्रतिमा सहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण को दान कर दें | महाराज कलश के साथ ही और बड़े-बड़े दान देने चाहिए | श्री राम आप अपने यूथ पत्तियों के साथ इसी विधि से प्रयत्न पूर्वक विजया एकादशी का व्रत कीजिए, इससे आपकी विजय अवश्य होगी |

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ब्रह्मा जी कहते हैं – नारद ! यह सुनकर श्री रामचंद्र जी ने मुनि के कथनानुसार उस समय विजया एकादशी का व्रत किया | उस वृत्त के करने से श्री रामचंद्र जी विजयी हुए | उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पाई और सीता को प्राप्त किया | बेटा जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं  उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है, और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है |

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – युधिष्ठिर ! इस कारण विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए | इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है |

विजया एकादशी का महत्व: (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)

विजया एकादशी का व्रत रखने से विजय और सफलता की प्राप्ति होती है।

भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए विजया एकादशी का व्रत रखा था।

इस व्रत के प्रभाव से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

विजया एकादशी श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का उत्तम अवसर है।

इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

विजय एकादशी व्रत की विधि: (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)

दशमी तिथि को सूर्यास्त से पहले ही कलश की स्थापना कर लेनी चाहिए |

एकादशी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निर्वृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर भगवान की पूजा करनी चाहिए |

घर के मंदिर में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।

गंगाजल से स्नान कराएं, दीप जलाएं, धूप-दीप अर्पित करें और भगवान का भजन करें।

फल, फूल, मिठाई आदि का भोग लगाएं।

विजया एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें।

रात भर जागरण करें और भगवान का ध्यान करें।

द्वादशी तिथि को सुबह स्नान करके ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।

विजया एकादशी व्रत के लाभ:  (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)   

 

विजय और सफलता की प्राप्ति

पापों का नाश

मोक्ष की प्राप्ति

सौभाग्य, समृद्धि और सुख की प्राप्ति

मनोकामनाओं की पूर्ति

आध्यात्मिक उन्नति

यह व्रत सभी के लिए लाभदायक है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।

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